Monday, January 2, 2012

घर: सीमट गयी


INSPIRED BY A PHOTO ESSAY BY JAVED IQBAL,
TO SEE HIS PHOTO ESSAY, CLICK HERE:

घर
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घर - उजड़ा,
कटा-फटा
दर्द का अंधियारा
किलकारियों से परे
एक अनजान सा घर
...
ना तुम्हारा- न मेरा
पर है ये वो किसी का

संजोय जाने कौन से मुर्दे
रखे है जाने कितने झरोखों में

न कोइ पुलकित मन
ना ही श्वास का ही ठिकाना
पर है वो - घर
घर, जो है उसका पूरा संसार

पलक झपकाते ही
मानो गायब सी हो गयी

सीमट सी गयी
ये संसार की चार-दिवारी
बस इतनी सी ही रह गयी
घर की मुंडेरी

घर - उजड़ा,
कटा-फटा
दर्द का अंधियारा

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